समाचार को शीर्षक दिया गया है कि – भारत के प्रधानमंत्री विवादित स्थल पर मंदिर का शिलान्यास करेंगे. इसके शीर्षक में ही लेखक की मंशा स्पष्ट हो जाती है. मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया देश के शीर्ष के निर्णय के बाद प्रारंभ हो रही है, फिर भी इसमें विवादित स्थल बताकर वाशिंगटन पोस्ट या एसोसिएटेड प्रेस क्या हासिल करना चाहते हैं? उच्चतम न्यायालय के सुस्पष्ट निर्णय के बाद भी श्रीराम जन्मभूमि स्थल क्यों विवादित है, इसके बारे में किसी तर्क का उल्लेख आलेख में नहीं मिलता.
हां, उच्चतम न्यायालय के निर्णय को भी 2019 के चुनाव परिणामों से जोड़कर संदिग्ध और पक्षपातपूर्ण साबित करने की कोशिश जरूर की गई है. इसमें कहा गया है कि स्थान को लेकर एक सदी पुराने विवाद का निस्तारण भाजपा की एकतरफा जीत के बाद पिछले वर्ष हुआ था. मजेदार बात यह है कि मंदिर के वास्तुकार को भी मोदी के गृह-राज्य का बताकर लेखक किसी अदृश्य योजना की तरफ संकेत करने की कोशिश की है.
लेखक ने 05 अगस्त तारीख की सांकेतिकता को समझाने की कोशिश में भी साम्प्रदायिकता ढूंढने का प्रयास किया है. एमिली के अुनसार भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल प्रांत जम्मू-कश्मीर की स्वायतता को पिछले वर्ष 5 अगस्त का ही निरस्त किया गया था, संभवतः उस तिथि को यादगार बनाने के लिए मोदी सरकार ने मंदिर के शिलान्यास के लिए इस तिथि का चुनाव किया है. अब उन्हें कौन बताए कि मंदिर के शिलान्यास का प्रश्न, जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन से गौण प्रश्न नहीं है. मंदिर का शिलान्यास जिस भी तिथि को हो, वह भारतीयों के स्मृति में स्वतः स्थान बना लगा.
पूरे लेख में एमिली की इच्छाएं तो अभिव्यक्त होती हैं, उनका दृष्टिदोष भी स्पष्ट होता है, लेकिन यह पता नहीं चल पाता कि उनके लिए यह स्थल अब भी विवादित क्यों है?
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के पश्चात भारतीय समाज ने सर्वमान्यता के साथ निर्णय को स्वीकार कर लिया, कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. निर्माण कार्य का शुभारंभ होने वाला है. ऐसे में कुछ लोग हैं जो किसी न किसी बहाने विवाद खड़ा करना चाहते हैं, सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं. वहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐतिहासिक तथ्यों व वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर सर्वसम्मत निर्णय सुनाया है.
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