पालघर हत्याकांड – हिन्दू विरोधियों के षड्यंत्र का हिस्सा

महाराष्ट्र के पालघर जिले के गढ़चिंचले गाँव में जूना अखाड़ा के महंत कल्पवृक्ष गिरी जी और महंत सुशिल गिरी जी तथा उनके वाहन चालक निलेश तेलगड़े को बड़ी निर्ममता से मारा गया. तक़रीबन ४०० लोगों के समूह ने भारी पथराव और मारपीट कर के उन्हें मार डाला. १६ अप्रैल की इस दुखद घटना के तीन दिन बाद उस मारपिट के कुछ वीडियो सोशल मिडिया पर वायरल हुए और लोगों में संताप की लहर उठी.

यह घटना क्षेत्र में फैली अफवाहों के कारण हुई, प्रशासन द्वारा यह तर्क दिया गया. इन साधुओं को चोर, किडनी चुराने वाला समझकर लोगों ने मार डाला. जिस समाज का मूल भारत का है, हिन्दू परंपराओं, रीति रिवाजों को मानने वाला, श्रद्धाभाव रखने वाला समाज साधु संतों को लेकर क्रूर व भावनाहीन कैसे हो सकता है? डहाणू की महालक्ष्मी की पूजा करता है, समाज में राम-राम कहने की परंपरा है, रामायण-महाभारत की कथाएं परंपरा से सुनाई जाती हैं, आज भी प्रचलित हैं. ऐसा होने पर यह घटना क्यों हुई? विवेक विचार मंच द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट में इन प्रश्नों के उत्तर मिले हैं. जांच समिति ने अपनी जांच के दौरान वहां के वनवासी समाज के प्रमुख लोगों, प्रमुख कार्यकर्ताओं, सरपंच आदि से बातचीत की.

कैथलिक बिशप कॉफ्रेंस ऑफ़ इंडिया, कष्टकरी संगठन, भूमिसेना, आदिवासी एकता परिषद और सीपीएम जैसे राजनीतिक दलों ने इन क्षेत्रों में पिछले कई सालों से अपना प्रभाव निर्माण किया है. धर्म परिवर्तन के लिए आग्रही क्रिश्चियन मिशनरीज का भी समर्थन है. इन सभी संगठनों तथा दलों का एक ही मुख्य लक्ष्य है – जनजाति समुदाय को हिन्दुत्व से और भारतीय संविधान से तोड़ना. जो शहरों में है, पढ़ लिख सकते हैं, विचार कर सकते हैं, इनके स्थान पर जनजाति समाज के मन में यह विचार भरना इन लोगों के लिये सहज था. इसी कारण धर्म प्रसार के लिए मिशनरीज ने भी भोले भाले समुदाय को चुना.

जनजातियों को अपनी हिन्दू परंपराओं से तोड़ने का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र क्षेत्र में बरसों से चलता आ रहा है. वामपंथियों के अभियान में मिशनरीज का सहयोग है. हम हिन्दू नहीं, हिन्दुओं के देवी-देवता हमारे नहीं. उनकी परम्पराएं हमारी नहीं, इस प्रकार का एक बड़ा दुष्प्रचार यहां पर किया जा रहा है. वास्तव में जनजातियों में अनेक परंपराएं है, जिसका संबंध सीधे हिन्दू देवताओं से ही है. जैसे जनजातियों के विवाह विधि में ‘राम राम’ का संस्कार, नृत्य के पूर्व जमीन को माता मानकर नमन कर के क्षमा मांगना, दशहरे पर किया जाने वाला रावण दहन. परन्तु वामपंथियों के प्रभाव से अनेक जनजाति अपनी परंपराएं छोड़ रावण पूजन जैसी परंपराएं अपना रहे है. जनजाति मेलों में क्रिश्चियन मिशनरी की उपस्थिति, फादर निकोलस और अन्य धर्मप्रचारक जनजाति मेलों में आकर उन्हें धमकाना, वारकरी परंपरा का विरोध, आदि घटनाएं जारी हैं.

आदिवासी एकता परिषद के कालूराम दोदरे जैसे लोग यहाँ जाति धर्म के नाम पर समाज में द्वेष उत्पन्न करने का काम खुलेआम करते है. हिन्दू धर्म के विरोध में लोगों के मन में विषैली भावना निर्माण करने से यहां पर लोगों का हिंसक होना, हरिनाम सप्ताह का कड़ा विरोध करना, रावण पूजन करना, ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं. सोशल मीडिया का उपयोग दुष्प्रचार के लिए किया जाता है.

जनजातियों के मन में अपने ही धर्म के प्रति जहर घोलने का कार्य यह वामपंथी कर रहे है. जनजातियों का अपना धर्म ही नहीं, ऐसा भी एक अपप्रचार क्षेत्र में में किया जा रहा है.

हिन्दुत्व के विरोध के साथ ही भारतीय संविधान का विरोध, परिसर के विकास का विरोध और लोकतंत्र विरोधी वातावरण तैयार करना, यह भी उनके षड्यंत्र का ही एक भाग है. प्रदीप प्रभु, ब्रायन लोबो और सिराज बलसारा ने क्षेत्र में कष्टकरी संगठन खड़ा किया है. जनजातियों का अपना संविधान है, जो १०० साल पहले लिखा गया है. प्रदीप प्रभु के अनेक वीडियो यह दावा करते हुए यू ट्यूब सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं. ऐसे ही कुछ वीडियो संविधान के बारे में गलतफहमी फैला रहे हैं. बुलेट ट्रेन जैसे प्रकल्पों का विरोध करने काम भी यही शक्तियाँ करती दिखाई दे रही हैं.

ऐसे हिन्दू विरोधी वातावरण में दो हिन्दू साधुओं की बर्बर हत्या की गयी. इससे पूर्व 1992 में भी इसी सीपीएम कार्यकर्ताओं ने विहिप के वनवासी विकास केंद्र पर हमला किया था. जो राष्ट्रहित के लिये काम कर रहा हो, जिसके शरिर पे भगवा वस्त्र हो, जिनके पास भगवा ध्वज हो, उन पर हमला करने की, उनका विरोध करने की सीपीएम के कार्यकर्ताओं की वृत्ति रही है. कुछ गाँव के सरपंचों पर केवल भाजपा से संबंध होने के कारण हमले हुए. उनके घर लूटे गए, जलाए गए हैं. तलासरी के करज गाँव के सरपंच, जो २२ अप्रैल को कोरोना के बारे में जनजागरण कर रहे थे, उनके खिलाफ माओवादियों ने भ्रम फैलाया. सरपंच, पुलिस की गाड़ी से गाँव में चोर लेकर आए हैं, ऐसी अफवाह फ़ैलाई गई थी. ऐसे भ्रम, अफवाहें फैलाकर लोगों को बहकाना, किसी की जिंदगी धोखे में लाना, यह काम सीपीएम के लोग करते आए हैं. महाराष्ट्र के गढ़चिरोली, चंद्रपूर जैसे जिले, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में वामपंथी माओवादियों का प्रभाव है. डहाणु जैसे क्षेत्र में इनका बढ़ता प्रभाव और जनजातियों में हिन्दू धर्म के प्रति बदलती मानसिकता माओवाद की पकड़ दिखाती है. साधुओं की हत्या माओवादियों के, मिशनरी के और सीपीएम जैसे राजनीतिक दलों के षड्यंत्र के कारण हुई है. जल्द से जल्द दिवंगत साधुओं को न्याय मिलना और दोषियों को सख्त दंड मिलना अत्यावश्यक है. ऐसा नहीं हुआ तो एक गलत सन्देश समाज में जाएगा.

गढ़चिचंले में साधुओं की हत्या हिंसा की पराकाष्ठा है. पालघऱ जिले के तलासरी, डहाणू, जव्हार में अलग-अलग संगठनों की आड़ में काम करने वाले इन लोगों के असली इरादों से पर्दा हटना बेहद आवश्यक है. इन लोगों की जड़ों को खंगाल कर इन्हें आरोपी बनाया जाना और इन लोगों की हरकतों के पीछे के असली इरादों की छानबीन करना आवश्यक है, जिसकी वजह से कानून व्यवस्था भंग होती है और क्षेत्र के नक्सल ग्रस्त होने का डर उत्पन्न होता है. यही वे लोग हैं, जो यहां पर होने वाली हिंसक, विकास विरोधी घटनाओं के मूल कारण हैं. फिलहाल घटना में आरोपी बताकर जिन लोगों को पकड़ा गया है, उनमें से असली गुनाहगारों को खोजकर निर्दोष वनवासियों को तुरंत मुक्त करना आवश्यक है, और इसके लिए केंद्रीय एजेंसी को जांच का जिम्मा सौंपना होगा.

जांच समिति

  1. श्री अंबादासजी जोशी (अध्यक्ष), सेवानिवृत्त न्यायाधीश, मुंबई उच्च न्यायालय
  2. एड. समीर कांबले (सदस्य सचिव), सामाजिक कार्यकर्ता
  3. एड. प्रवर्तक पाठक, सामाजिक कार्यकर्ता
  4. श्री संतोष जनाठे, जनजातीय कार्यकर्ता, पालघर
  5. श्री किरण शेलार, पत्रकार-संपादक
  6. श्री लक्ष्मण खरखडे, सेवानिवृत्त पुलिस सह आयुक्त
  7. श्रीमती माया पोतदार, सामाजिक कार्यकर्ता

Comments