कस्बों और शहरों में सैकड़ों प्लॉट ईसाई मिशनरियों और मुल्लाओं के अवैध धार्मिक निर्माण के शिकार हो गए हैं. देश के अन्दर और बाहर से धन की कोई कमी न होने के कारण उनकी नजर हमेशा ऐसी सरकारी ज़मीन पर रहती है, जहां कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ या उसमें समय लग सकता है, पूरी योजना के साथ सोच-समझकर और सांठगांठ के साथ अब मुल्ला-मिशनरी हमारी वन भूमि तक भी पहुंचकर अवैध निर्माण कर रहे हैं. जिससे हमारे प्राकृतिक संसाधनों और हरित क्षेत्र का अस्तित्व ही खतरे में है. हाल ही में ऑर्गनाइज़र ने कुरनूल, (आंध्र प्रदेश) में वन भूमि के अतिक्रमण की सूचना दी थी और कैसे कानूनी अधिकार संरक्षण मंच के हस्तक्षेप ने वन विभाग को चर्च के निर्माण को रोकने के लिए मजबूर किया. लेकिन बाद में इसी तरह के अतिक्रमण के दो नए उदाहरण सामने आए हैं, एक तेलंगाना और दूसरा आंध्र प्रदेश में.
भद्राचलम में अवैध मस्जिद का निर्माण
भद्राचलम में मनुगुर वन क्षेत्र इस्लामिक संगठनों के निशाने पर है. हाल ही में मनुगुर में वन भूमि पर एक अवैध मस्जिद का निर्माण चर्चा में है. इस क्षेत्र में उन्मादियों द्वारा समर्थित मुल्लाओं ने पहले मस्जिद का ढांचा और बाद में इसे एक स्थायी मस्जिद का आकर देने का प्रयास किया. उन्होंने मस्जिद का नाम ‘मस्जिद खुबा’ रखा. जगह के बारे में पहले से ही फर्जी अफवाहें फैलाईं गईं, ताकि जनता को भ्रमित किया जा सके. तेलंगाना सरकार के मुस्लिम तुष्टिकरण के रवैये को देखते हुए, एक बार संरचना पूरी हो जाने के बाद इसे गिराना मुश्किल था. इसलिए लीगल राइट प्रोटैशन फोरम (LRPF) ने तुरंत तेलंगाना में भद्राद्री कोठागुडेम जिले के कंजर्वेटर से संपर्क किया और 9 जुलाई, 2019 को एक औपचारिक शिकायत दर्ज करवाई. एलआरपीएफ की शिकायत के आधार पर, वन अधिकारियों द्वारा 10 जुलाई को पुलिस सुरक्षा के साथ अवैध ढांचे को गिराया गया. शिकायत में स्थान का विवरण और संरचना की तस्वीरें दी गईं थीं. हालाँकि, षडयन्त्रकारी मुल्ला इसे गिराने नहीं देना चाहते थे. अवैध ढांचे को गिराये जाने के बाद, उन्होंने आसपास के गांवों के मुसलमानों की भीड़ को इकट्ठा किया, जो घटनास्थल पर पहुंची और वन अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन किया. योजनाबद्ध तरीके से दलील देकर ढांचे को गिराने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों की गिरफ्तारी की भी माँग की. परन्तु वन अधिकारी अडिग रहे और भीड़ तितर-बितर हो गई.
वन भूमि पर मिशनरियों द्वारा चर्च का निर्माण
दो तेलुगु राज्यों की आस्था का केंद्र प्रसिद्ध तीर्थस्थल भद्राचलम में स्थित है. जून, 2019 में, एलआरपीएफ ने पूर्वी गोदावरी जिले के यतापका गांव में उन्मादियों द्वारा एक चर्च के बनाए जाने की पुष्टि की. चर्च के सामने एक क्रॉस भी बनाया जा रहा था. प्रारंभ में मिशनरियों ने सीमेंट बेस और उसके ऊपर एक छत- का निर्माण किया और इसके सामने एक क्रॉस बनाया.
अतिक्रमण की जानकारी होने के बाद, एलआरपीएफ ने (आंध्र प्रदेश) वन सतर्कता विभाग, प्रधान सचिव (वन) और चिंटुर के प्रभागीय वन अधिकारी को स्थान और संरचना का विवरण देते हुए एक औपचारिक शिकायत दर्ज की. शिकायत में कहा गया कि इन ढांचों को ध्वस्त किया जाना चाहिए और वन भूमि को ऐसे अवैध निर्माणों से मुक्त किया जाना चाहिए.
09 जुलाई, 2019 को, वन अधिकारी प्रभावित स्थल पर पहुंचे और वहां पर अवैध रूप से निर्मित क्रॉस को हटा दिया, वन अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि शेष निर्माण (सीमेंट बेस के साथ छत) का उपयोग वन विभाग अपने आधिकारिक उद्देश्य के लिए करेगा.
हालांकि, एलआरपीएफ के कार्यकारी अध्यक्ष एएस संतोष, ने ऑर्गनाइज़र को बताया कि ऐसा निर्माण एक दिन में नहीं हो सकता है और मिशनरियों ने निश्चित रूप से अपने अवैध ढांचे को समायोजित करने के लिए कई पेड़ों को काट दिया है. संतोष बताते हैं कि मिशनरियों का दुस्साहस ऐसा था कि उन्होंने अवैध निर्माण के लिए बिजली कनेक्शन भी ले लिया था. एलआरपीएफ ने एपी वन सतर्कता विभाग को अपनी शिकायत में उसी का उल्लेख किया और इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि इससे वन भूमि पर इस तरह के अवैध कब्जे के पीछे इस्लामी शक्तियों व ईसाई मिशनरियों का दुस्साहस और साजिश का पता चलता है.
हमारे जंगलों के लिए सबसे बड़ा खतरा वन अधिकारियों द्वारा उचित निगरानी की कमी बताई जाती है. संतोष ने बताया कि जब तक वन विभाग और अधिकारियों द्वारा इस तरह के दुस्साहस और अतिक्रमण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक अन्य लोग भी इसी तरह के अपराध करने के लिए प्रेरित होंगे. वन हमारे सबसे बड़े प्राकृतिक संसाधन हैं और हमारे जीवन के पर्यावरण की सुरक्षा में ग्रीन कवर प्रदान करते हैं. हमारे वनों पर पहले से ही खनन माफिया और रेत लॉबी की बुरी नजर है. अब इन पर नए दुश्मन – मुल्ला मिशनरी गठजोड़ की भी काली नजर पड़ गई है, जो अपने नापाक उद्देश्यों के लिए हमारी वन भूमि का अतिक्रमण करने के लिए तैयार है. यदि इन्हें कानून के साथ-साथ जनजागरूकता के माध्यम से नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह चूक हमारे प्राकृतिक संसाधनों को खतरे में डालेगी. ऐसे गैरकानूनी अतिक्रमणों से यदि हम अपने जंगलों को खो देंगे, तो पहले से ही जल संकट से जूझ रहा हमारा देश तीसरी दुनिया के देशों का हिस्सा बनने के लिए मजबूर हो जाएगा.
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