केरल की वामपंथी सरकार हिंदू संस्कृति और परंपरा को ध्वस्त करने पर उतारू है। वह हिंदू रीति-रिवाजों को कुचल देना चाहती है। इस बारे में उसे देश के सामाजिक ताने-बाने की रत्ती भर चिंता नहीं है
शबरीमलामला का ताजा मामला मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, वामलोकतांत्रिक मोर्चा और विशेष रूप से मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की कट्टर हिंदू विरोधी नीति का एकमात्र हिस्सा नहीं है। दरअसल, यह हिंदुओं और हिंदू संस्कृति के खिलाफ पिनरई सरकार का सबसे ताजातरीन षड्यंत्र है। इस संबंध में केरल सरकार द्वारा 12 नवंबर, 2018 को केरल उच्च न्यायालय में दाखिल किया गया हलफनामा इसका स्पष्ट उदाहरण है। इसमें लिखा है कि ‘शबरीमाला पर केवल हिंदुओं का ही अधिकार नहीं है। किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए मुस्लिमों और ईसाइयों के साथ भी विमर्श किया जाना जरूरी है।’ यह हलफनामा वकील टी. जी़ मोहनदास द्वारा दायर उस जनहित याचिका के जवाब में दाखिल किया गया, जिसमें भगवान अयप्पा के मंदिर में गैर-हिंदुओं और नास्तिकों के आने पर नियम कड़े करने की बात की गई थी।
यहां यह भी बता देना जरूरी है कि गत 28 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शबरीमला मंदिर में हर आयु की महिलाओं के जाने की अनुमति देने पर वहां पहुंचने वाली अधिकांश महिलाओं में नास्तिक, हिन्दुत्व विरोधी, किस आॅफ लव मुहिम की नेता व सेकुलर महिलाएं थीं। इनमें से कुछ फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के मंच पर इस बारे में भद्दी और अश्लील टिप्पणियां और तस्वीरें पोस्ट कर चुकी थीं। शबरीमला की कोई भी श्रद्घालु महिला भक्त इस भीड़ का हिस्सा नहीं थी।
दरअसल, राज्य भर में महिलाओं ने मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की महिलाओं को जाने की अनुमति देने के विरोध में नाम जप यात्रा आयोजित की थी। ऐसी प्रत्येक यात्रा में हजारों की भीड़ उमड़ी जिसमें अनेक जातियों और दलों की महिलाएं शामिल थीं। उनके हाथों में किसी पार्टी के झंडे नहीं थे, न ही किसी राजनीतिक दल ने उन्हें यह यात्रा निकालने के लिए कहा था। ये वे महिलाएं थीं जिनकी भगवान अयप्पा में श्रद्धा है। केरल सरकार ने न्यायालय को जो हलफनामा सौंपा उसमें कहा गया है कि शबरीमला पंथनिरपेक्षता के नियमों नहीं चल रहा, जबकि शाम को मंदिर के कपाट बंद करते समय जो हरिवर्षनम गीत बजता है, वह प्रख्यात गायक डॉ. के. जे़ येसुदास की आवाज में है, जो जन्म से ईसाई हैं।
मंदिर पर जनजातीय समुदाय का भी मालिकाना अधिकार है। शबरीमला के संबंध में प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार, इस मंदिर के साथ ही एक बौद्ध मंदिर था। वावर स्वामी का भी एक मंदिर है, जो अयप्पा स्वामी के घनिष्ठ मित्र थे। इन दलीलों के आधार पर केरल सरकार ने दावा पेश किया है कि मोहनदास द्वारा दायर याचिका के बारे में फैसला करते समय वक्फ बोर्ड, मुस्लिम और ईसाई समूहों, वावर ट्रस्ट, जनजातीय संगठनों आदि के साथ भी चर्चा की जाना चाहिए।
केरल सरकार के अनुसार, अदालत समाचार पत्रों में प्रकाशन के बिना इस मुद्दे पर अपना फैसला नहीं दे सकती। दरअसल, यह हिंदुओं और हिंदू संस्कृति के खिलाफ पिनरई सरकार का सबसे ताजा षड्यंत्र है। राज्य सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह हिंदू संस्कृति और परंपरा को ध्वस्त करने पर उतारू है। वह हिंदू रीति-रिवाजों को कुचल देना चाहती है। इस बारे में उसे देश के सामाजिक ताने-बाने की रत्ती भर भी चिंता नहीं है। वह जप यात्रा में शामिल होने वाली हिंदू महिलाओं को अपमानित करने पर आमादा है। थरूर ने तो यहां तक लिखा है कि परंपरा के साथ चिपकी हुई हिंदू महिलाएं ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ से ग्रसित हैं।
साभार: पाञ्चजन्य
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