लोकमंथन में भारतीय अर्थ चिंतन पर मंथन

रांची. लोकमन्थन 2018 के दोपहर भोजन के बाद के सत्रों में अर्थवलोकन सत्र चला. सत्र में वक्ताओं ने भारतीय अर्थ चिंतन पर प्रकाश डाला.
तुलसी तिवारी जी ने अर्थावलोकन विषय पर कहा कि भारत एक अकेला देश है दुनिया में जिसमें 50% जनसंख्या के पास एक से दो एकड़ जमीन है, मगर हमारा किसान गरीब है क्योंकि हमने अर्थव्यवस्था को केंद्रित कर दिया है. इसीलिए विकेंद्रीकरण करके अर्थव्यवस्था को वापस ले जाने की आवश्यकता है. पहले इंजीनियर भी साइकिल पर 30 किलोमीटर चलते थे, यह नैतिकता की पराकाष्ठा थी. फिर 1970 से लेकर 1980 तक के काल में भारत में सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार प्रारंभ हुआ और 1980 से लेकर 1990 तक के काल में वह व्यापारी जो अपने आप को व्यापारी कहते हैं, लेकिन ऐसी प्रवृत्ति के लोग भारत में अर्थव्यवस्था के ऊपर हावी हुए हैं. तकनीक अपने आप में एक ताकत है, यह प्रकृति की देन है. तकनीक उस चाकू की तरह है जो यह तय नहीं करता कि उसका प्रयोग करके हम गला काटें या फल काटें. तकनीक को लेकर शुभ और अशुभ होने की संभावना बराबर बनी रहती है. जो लोग शुभ सोचते हैं, जिनमें शुभ उद्यमिता करने की ताकत है, वह तकनीक को शुभ की और लेकर जाते हैं और जो अशुभ करना चाहते हैं वे इसी तकनीक का दुरुपयोग करना चाहते हैं. आज जितनी भी तकनीकों का हम प्रयोग कर रहे हैं, उनमें से अधिकतम भारतीयों द्वारा विकसित हुई है. आगे और भी अच्छी तकनीक कैसे विकसित हो? शासन की और नीति की शक्ति उस पर कैसे लगे यह सोचना आवश्यक है. दुनिया की अर्थव्यवस्था चलाने वाले लोग मुद्रा पर सट्टा खेलते हैं और हम लोग जो मेहनत और मजदूरी से अपने काम में लगे हुए हैं, एक झटके में हमारे पूरे के पूरे शुभ लाभ का जो धन है एक आदमी के पास सरककर चला जाता है. यह प्रक्रिया  विकराल और भयावह है, इसको समझे बिना हम बड़े नुकसान उठा रहे हैं. अर्थ के प्रति भारतीय चिंतन को जानने के जो भी सार्थक प्रयास देश और विदेश में चल रहे हैं, वह आपस में जुड़ें यह अत्यंत आवश्यक है. ऐसे विचारशील व्यक्तियों के समूह को इस विषय को लेकर समग्रता से कार्य करने की आज महती आवश्यकता है जो आत्मीयता नैतिकता और विभिन्न विधाओं में निपुणता से परिपूर्ण हो. ऐसा होने पर ही भारत स्वयं और विश्व की अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा की ओर ले जाने की ताकत रखता है तथा दैनंदिन जीवन में सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और राष्ट्रीय परिवेश में प्रकृति प्रदत्त एकात्मता को स्थापित करने की ताकत भी रखता है. अर्थ में निहित दैवीय शक्ति सृष्टि में सृजनशील मानव की एक नई सभ्यता को जन्म दे सकती है, ऐसा मेरा मानना है.
श्रीमति संपतिया जी ने कहा कि विधानसभा लोकसभा से बढ़कर ग्राम सभा है. हमारे जनप्रतिनिधि चाहे वह पंच हो, सरपंच हो, जिला परिषद सदस्य या जिला परिषद अध्यक्ष जो जनप्रतिनिधि चुनकर आते हैं उन्हें दबाने का भी प्रयास होता है. उन्होंने आग्रह किया कि चुने हुए प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण को महत्व दिया जाए.

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