You Are Here: Home » हमें विश्व को प्रकाश देने वाला आदर्श बनना है – डॉ. मोहन भागवत जी हमें विश्व को प्रकाश देने वाला आदर्श बनना है – डॉ. मोहन भागवत जी

मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत को धर्म का अधिष्ठान है. यह देश भविष्य में विश्व शक्ति बनेगा. विश्व में अनेक राष्ट्र आए और गए. परंतु, भारत जैसा था, वैसा ही है. भारत का यह सनातन धर्म है, जिसे हिन्दुत्व कहा जाता है. हम भारत-भू की छाया में पले-बड़े हुए हैं. हमें जगविजेता सिकंदर या चंगेज़ खान नहीं बनना है. बल्कि विश्व को प्रकाश देने वाला आदर्श बनना है. यह बात समझने के लिये एकनाथ जी की यह पुस्तक आदर्श है. इस पुस्तक के मार्गदर्शन पर कार्य किया जाए तो कार्य निश्चित ही सार्थक होगा.
विवेकानंद केंद्र के संस्थापक स्व. एकनाथ जी रानडे जी द्वारा कार्यकर्ताओं को दिये बौद्धिकों का संकलित स्वरूप सेवा समर्पण  पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है. पुस्तक के लोकार्पण समारोह में सरसंघचालक जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. विवेकानंद केंद्र के महासचिव भानुदास जी धाक्रस समारोह में विशेष रूप से उपस्थित रहे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि संपूर्ण विश्व में विविध सामाजिक कार्य चलते हैं. परन्तु, उस कार्य को अधिष्ठान होना आवश्यक है. अधिष्ठान के बिना कार्य को सार्थकता नहीं आती. भारत के बाहर समाजकार्य को जड़वादी अधिष्ठान होता है, जिससे प्रसिद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है. तथापि, हमारे संस्कारों और परंपराओं के कारण हमारा समाज कार्य आध्यात्मिक अधिष्ठान के आधार पर चलता है. चिरकाल तक रहने/चलने वाला कार्य इस आध्यात्मिक अधिष्ठान से ही होता है. क्यूंकि, वह कार्य ‘शिवभावे-जीवसेवा’ के भाव से होता है.
यंत्र हो या वाहन हो या भूमि हो, हम सबकी पूजा करते हैं. क्यूंकि हम हरेक अंश में परमात्मा को, चैतन्य को देखते हैं. परमात्मा का यह अधिष्ठान अपने देश का स्थाई भाव है. कितनी भी विपदाएं क्यों न आएं, यह स्थाई भाव नहीं जाएगा. हर एक व्यक्ति में मैं ही हूँ, सामने वाला व्यक्ति भी मैं ही हूं, ऐसा समझने के अधिष्ठान में ही मानव की सेवा क्यों की जाए, इसका उत्तर है. सेवा उपकार स्वरूप नहीं, बल्कि पापों को धोने के लिए करनी है, यह इस मिट्टी का विचार है.
सरसंघचालक जी ने कहा कि सामाजिक, राजकीय एवं वैयक्तिक सर्व स्तरों पर यह पुस्तक उपयुक्त है. इसमें केवल बौद्धिक विकास नहीं, बल्कि प्रचिति के अनुभव हैं. जीवन व्यतीत करके दिखाने वाला ये वह  मार्ग है, जिस पर चलकर अनेक कार्यकर्ता तैयार हो रहे है. यह पुस्तक विज्ञान की कसौटी पर उतर आया है. उन्होंने उपस्थित जनों से पुस्तक का प्रचार प्रसार करने का आह्वान किया.
विवेकानंद केंद्र के महासचिव भानुदास धाक्रस इन्होने मनोगत व्यक्त किया. उन्होंने कहा, “सम्पूर्ण देश में विवेकानंद केंद्र की ३३४ शाखाए कार्यरत है. केंद्र के माध्यम से चलाई जानेवाली ७३ स्कूलोंमे ३५ हजार विद्यार्थी शिक्षा ले रहे है. चार रुग्णालय भी केंद्र के माध्यम से चलाए जा रहे है. स्वामी विवेकानंद जी का व्हिजन और एकनाथजी का मिशन ह्रदय में लेकर हम कार्य कर रहे है. विवेकानंद केंद्र के मराठी प्रकाशन विभाग सचिव सुधीर जी जोगलेकर इन्होने अपने प्रकल्पोकी जानकारी उपस्थितोंको दी.

Comments