जयपुर में संस्कृत के ज्ञान-ध्यान की गंगा, अष्टावधान विधा का आयोजन


जयपुर (विसंकें). भारत में अनेक पुरातन विधाएं आज विलुप्त होने के कगार पर हैं. जिनमें से अष्टावधान विधा भी एक है. अष्टावधान अर्थात आठ व्यवधान. इस विधा में काव्य रचना के दौरान रचनाकार को आठ व्यवधानों का समाधान निकालते हुए काव्य रचना करनी होती है.
संस्कृत-भारती की जयपुर ईकाई ने मानसरोवर स्थित होटल प्रिंस में अष्टावधान कार्यक्रम आयोजित किया. जिसमें आंध्र प्रदेश के विद्वान दोर्बल प्रभाकर शास्त्री जी ने आठ विद्वानों के द्वारा लगातार विभिन्न साहित्यिक बाधाएं उत्पन्न करने के बावजूद काव्य रचना करने के साथ साथ उनके द्वारा उत्पन्न की गई बाधाओं का समाधान देकर उपस्थित श्रोताओं को अपने कौशल से भावविभोर कर दिया तथा भारत की समृद्ध परम्परा को जीवंत किया. राजस्थान में इस प्रकार का यह पहला आयोजन था.
अष्टावधान विधा के बारे में बताते हुए दोर्बल प्रभाकर जी ने कहा कि इस विधा में एक काव्य बनाने वाला तथा आठ प्रच्छक (प्रश्न पूछने वाले) होते हैं. जिनका कार्य रचनाकार के सम्मुख बाधा उत्पन्न करना है. काव्य रचनाकार को इन बाधाओं का समाधान करने के साथ-साथ काव्य की रचना करनी होती है. इसी प्रकार शतावधान, सहस्रावधान भी आयोजित किया जाता है, जो एक ही समय में सौ तथा हजार लोगों के प्रश्नों का समाधान करते हुए काव्य रचना करते हैं. समय के साथ अब यह कला विलुप्त होती जा रही है, इस विधा का प्रसार अत्यन्त आवश्यक है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य प्रो. प्रकाश पाण्डेय जी ने की, कार्यक्रम में प्रो. सुरेंद्र शर्मा, प्रो. वाई.एस. रमेश जी, जयपुर महानगर अध्यक्ष प्रकाश शर्मा जी, संस्कृत विश्वविद्यालय की साहित्य विभागाध्यक्षा स्नेहलता शर्मा जी, बनस्थली विद्यापीठ काल संकाय प्रमुख अनिता जैन उपस्थित थे.
यह है अष्टावधान विधा –
  1. निषेधाक्षरी – जब बनाए जाने वाले श्लोक का पहला अक्षर बोला जाता है तो यह अगले सम्भावित अक्षर के उपयोग को मना करता है.
  2. समस्या पूर्ती – इसमें एक श्लोक का हिस्सा बोल पूरा बनाने को कहा जाता है.
  3. दत्तपदी – इसमें चार कोई भी शब्द देकर उनसे किसी दी हुई विशेष स्थिति के वर्णनार्थ श्लोक बनवाते हैं.
  4. काव्यकला – इसमें किसी भी पुस्तक का श्लोक सुना उसका पूर्ण विवरण पूछा जाता है.
  5. अप्रस्तुतप्रसंगी – जब अष्टावधानी ध्यान लगा श्लोक बना रहा होता है, तब उसे इधर-उधर के असम्बद्ध प्रश्न पूछ ध्यान भटकाने का कार्य किया जाता है.
  6. व्यस्ताक्षरी – यह किसी श्लोक के अक्षरों के क्रम को उलट कर बताता है तथा अष्टावधानी को सीधा करना होता है.
  7. आशुकवित्व – इसमें एक परिस्थिति देकर तुरन्त अपनी इच्छा के छन्द में काव्य बनवाया जाता है.
  8. घंटानाद – इसमें एक व्यक्ति बीच-बीच में ध्यान भटकाने के उद्देश्य से घंटा बजाता है तथा अन्त में कितनी बार घंटा बजाया, यह बताना होता है.

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