TUESDAY, DECEMBER 12, 2017
महामना ने काशी हिन्दू विवि में मानवीय मूल्यों को भी स्थापित किया
काशी (विसंकें). काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी की 156वीं जयन्ती पर कार्यक्रम का आयोजन मालवीय मिशन की ओर से किया गया. राष्ट्र निर्माण में महामना के लोक प्रेरक जीवन दर्शन मूल्य विषय पर मालवीय भवन में कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी जी ने कहा कि महामना के आदर्शों में भारतीय संस्कृति के पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का आपस में समन्वय है. महामना ने विश्वविद्यालय में चिकित्सा, कला, विज्ञान, धर्म, दर्शन, प्रौद्योगिकी के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी स्थापित किया. जबकि पश्चिमी देशों में प्लेटो, सुकरात, आदि विचारकों में मानवीय मूल्य का ज्ञान नहीं दिया जाता.
प्रो, हृदय नारायण शर्मा जी ने कहा कि महामना के दिव्य आदर्श सीमित क्षेत्र वर्ग समाज के कार्य तक ही नहीं थे. महामना ने छात्रों के व्यक्तित्व निर्माण के लिए संस्कारवान शिक्षा, ब्रह्मचर्य, शिष्टाचार, व्यायाम, शारीरिक-मानसिक सभी में चेतना शक्ति की शिक्षा के केन्द्र स्थापित किये. विशिष्ट वक्ता पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम यादव जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति रिश्तों की संस्कृति है. वास्तव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का समन्वय ही हिन्दुत्व का मूल मंत्र है. विश्व में केवल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ही मानवीय मूल्य की शिक्षा दी जाती है. हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में ही विज्ञान समाहित है. लेकिन आज विज्ञान व संस्कृत की शिक्षा एक साथ नहीं दी जाती है.
जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह जी ने कहा कि राष्ट्र निर्माण केवल विराट-चित्त वाले महापुरूष ही कर सकते थे, जो मालवीय जी में था. महामना राष्ट्र निर्माण के साथ ज्ञान और धर्म आन्दोलन को साथ लेकर चले. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आध्यात्मिक परंपरा व संस्कृति का गहन केन्द्र है. किसी भी राष्ट्र का मूल्यांकन जी.डी.पी. व जी.एन.पी. से होता था. लेकिन भूटान के राष्ट्रपति ने एक नया मूल्यांकन दुनिया को दिया – जी.एन.एच. (नेशनल ग्रॉस हैपिनेस). महामना का जीवन न्यासी और सन्यासी का था.
मणिपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आद्याप्रसाद पाण्डेय जी ने कहा कि महामना ने भारतीय संस्कृति के संवहन के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर जी (श्रीगुरूजी) महामना जी की इसी बगीया के फूल रहे यानि विवि के छात्र रहे. तत्पश्चात यहीं पर शिक्षक के रूप में कार्य भी किया. अखिल भारतीय विद्वत परिषद के महासचिव आर्चाय कामेश्वर उपाध्याय जी ने कहा कि हिन्दू समाज एवं राष्ट्र की एकता को ध्यान में रखते हुए महामना ने 1926 में काशी के दशाश्वमेध घाट पर दलित समाज के सदस्यों को मंत्र देकर दीक्षित किया. राष्ट्र निर्माण के लिए वकालत छोड़ने की प्रतिज्ञा की और अपना शरीर भिक्षा पर चलाने का संकल्प लिया. लेकिन चौरी चौरा कांड में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी से बचाने के लिए स्वयं अपनी प्रतिज्ञा तोड़ी और 114 लोगों को फांसी से बचाया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय प्रभारी वीसी एवं रजिस्टार डॉ. नीरज त्रिपाठी जी ने कहा कि मालवीय जी भविष्य दृष्टा थे. उन्हें पूर्वाभास हो गया था कि भारत राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेगा. लेकिन इस स्वतंत्रता को अक्षुण्य बनाये रखने के लिए सुयोग्य लोगों की आवश्यकता थी, इसी उद्देश्य से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की. कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत मिशन के महामंत्री विजयनाथ पाण्डेय जी ने किया.
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