भारत सनातन काल से एक सांकृितक रा रहा है
भारत के बारे म पिम क धारणा गलत
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने भारत को परभािषत करते ए कहा क भारत पििम अवधारणा वाला देश मा नह है। यह सनातन काल से एक सांसकृितक देश रहा है। अतः भारत को देखने का पिमी नजरया ही गलत है। वातव म भारत ऐसा देश है िजसने दुिनया को मानवता का पाठ पढाया है। हमारी सयता म अनेक सयता को समािहत करने क शि है। तभी भारत अनेक भाषा,वेशभूषा,धम,पंथ को मानने वाला देश बन सकने म सम आ है। जब हम िहदुव क बात करते ह तो केवल एक संदाय क बात नह करते , हमारे िलए इस देश का हर नागरक िहदु है यक यहकेवल एक पंथ िवशेष नह है िहदुतव जीवन शैली है जीवन जीने का तरीका है। मगर कुछ लोग अपने िनिहत वाथ के कारण आरएसएस को गलत तरीके से पेश करते ह। वातव म भारत क भाषा िविवधता, ांितय िविवधता वैदक काल से चली आ ही है। हम आरंभ से मानते आ रह क अनेक पंथ, अनेक संदाय अपनी अपनी उपासना पित को अपनाते ए सभी का मान समान करने क हमारी संकृित ही हमारी पहचान है। हम जब भारत के िवकाश क बात करते ह तो उसमे यहाँ रहने वाले हर ि के िवकाश क बात करते ह । उसम पंथ संदाय को लेकर हमारे मन म कोई भेदभाव नह है। संसार म यही एकमा ऐसा देश है जो िविभ संकृितय को समािहत कर सदय से अपनी पहचान बनाए रखने म सम रहा है।
आरएसएस मुख ने कहा क भारत म रहने वाले अय धमाबलंबी यानी मुसलमान-ईसाई लोग भी खुद को भारतीय बताने म गव करते रहे ह मगर 1940 के बाद राजनैितक वाथ क कारण कुछ लोग का नजरया बदला है लेकन हम पूण िवास है क यह बदलाव सामियक है। वातव म भारत म रहने वाला
हर नागरक खुद को इसी देश से जोड़ कर देखता है और इसीको लेकर गव भी करता है। उहने कहा क भारत रा का िनमाण सय,मूय आधारत जीवन,धम और संकार क धरातल पर हा है तभी यह सदय से अपनी अलग पहचान बनाए रखने म समथ रहा है। हम अपनी मातृभूमी भारत को परम वैभवशाली रा बनना देखना चाहते ह। आरएसएस ारा आयोिजत िविश नागरक सेलन को संबोिधत करते ए मोहन भागवत ने कहा िक संघ को लेकर लोगों म ांितयाँ फै लाई जाती है, संघ को बदनामिकया जाता है जबिक वािवकता ा यह संघ की शाखा म आने पर ही आपको पता चलता है। संघ को समझने के िलए ही ऐसे कायम आयोिजत िकए जाते ह, तािक लोगों की ांितयाँ दूर हो सके । हमारा आह है िक आप संघ को नजिदक से जानने के िलए संघ से जुड़े, संघ को िनकट से देख महशुस कर तब जाकर संघ ा करता है यह आपको समझ म आएगा। हमारा तो मानना है िक संघ जैसा संगठन और नहीं है। लेिकन संसार म अगर ऐसे भाव लेकर रा सेवा को समिपत कोई संगठन चल रहा है तो हम खुशी होगी।
भारत के बारे म पिम क धारणा गलत
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने भारत को परभािषत करते ए कहा क भारत पििम अवधारणा वाला देश मा नह है। यह सनातन काल से एक सांसकृितक देश रहा है। अतः भारत को देखने का पिमी नजरया ही गलत है। वातव म भारत ऐसा देश है िजसने दुिनया को मानवता का पाठ पढाया है। हमारी सयता म अनेक सयता को समािहत करने क शि है। तभी भारत अनेक भाषा,वेशभूषा,धम,पंथ को मानने वाला देश बन सकने म सम आ है। जब हम िहदुव क बात करते ह तो केवल एक संदाय क बात नह करते , हमारे िलए इस देश का हर नागरक िहदु है यक यहकेवल एक पंथ िवशेष नह है िहदुतव जीवन शैली है जीवन जीने का तरीका है। मगर कुछ लोग अपने िनिहत वाथ के कारण आरएसएस को गलत तरीके से पेश करते ह। वातव म भारत क भाषा िविवधता, ांितय िविवधता वैदक काल से चली आ ही है। हम आरंभ से मानते आ रह क अनेक पंथ, अनेक संदाय अपनी अपनी उपासना पित को अपनाते ए सभी का मान समान करने क हमारी संकृित ही हमारी पहचान है। हम जब भारत के िवकाश क बात करते ह तो उसमे यहाँ रहने वाले हर ि के िवकाश क बात करते ह । उसम पंथ संदाय को लेकर हमारे मन म कोई भेदभाव नह है। संसार म यही एकमा ऐसा देश है जो िविभ संकृितय को समािहत कर सदय से अपनी पहचान बनाए रखने म सम रहा है।
आरएसएस मुख ने कहा क भारत म रहने वाले अय धमाबलंबी यानी मुसलमान-ईसाई लोग भी खुद को भारतीय बताने म गव करते रहे ह मगर 1940 के बाद राजनैितक वाथ क कारण कुछ लोग का नजरया बदला है लेकन हम पूण िवास है क यह बदलाव सामियक है। वातव म भारत म रहने वाला
हर नागरक खुद को इसी देश से जोड़ कर देखता है और इसीको लेकर गव भी करता है। उहने कहा क भारत रा का िनमाण सय,मूय आधारत जीवन,धम और संकार क धरातल पर हा है तभी यह सदय से अपनी अलग पहचान बनाए रखने म समथ रहा है। हम अपनी मातृभूमी भारत को परम वैभवशाली रा बनना देखना चाहते ह। आरएसएस ारा आयोिजत िविश नागरक सेलन को संबोिधत करते ए मोहन भागवत ने कहा िक संघ को लेकर लोगों म ांितयाँ फै लाई जाती है, संघ को बदनामिकया जाता है जबिक वािवकता ा यह संघ की शाखा म आने पर ही आपको पता चलता है। संघ को समझने के िलए ही ऐसे कायम आयोिजत िकए जाते ह, तािक लोगों की ांितयाँ दूर हो सके । हमारा आह है िक आप संघ को नजिदक से जानने के िलए संघ से जुड़े, संघ को िनकट से देख महशुस कर तब जाकर संघ ा करता है यह आपको समझ म आएगा। हमारा तो मानना है िक संघ जैसा संगठन और नहीं है। लेिकन संसार म अगर ऐसे भाव लेकर रा सेवा को समिपत कोई संगठन चल रहा है तो हम खुशी होगी।
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