सिक्ख नरसंहार मामले में फैसला सुनाते जज भी हुए भावुक
नई दिल्ली. 1984 सिक्ख नरसंहार के मामले में दोषी सज्जन कुमार पर निर्णय सुनाते वक्त न्यायालय में जज भी भावुक हो गए. सजा का निर्णय सुनते ही दोषियों के वकीलों के चहरे पर भी मायूसी साफ झलक रही थी. मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का निरम्य़ को पलटते हुए सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई. न्यायालय ने सज्जन कुमार पर 05 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. जबकि बाकी दोषियों को जुर्माने के तौर पर एक-एक लाख रुपये देने होंगे.
उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि कई दशक से लोग न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं. जांच एजेंसियों पर भी टिप्पणी कहते हुए कहा कि ये जांच एजेसिंयों की नाकामी है कि अब तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सिक्ख विरोधी दंगे शुरू हो गए थे और एक नवंबर 1984 को दिल्ली कैंट के राजनगर क्षेत्र में दो सिक्ख परिवारों के पांच सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. निचली अदालत ने सज्जन कुमार को इस मामले में बरी कर दिया था.
उसके बाद याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की. मामले में जस्टिस एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने 29 अक्तूबर को सीबीआई, दंगा पीड़ितों और दोषियों की ओर से दायर अपीलों पर दलीलें सुनने का काम पूरा करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. याचिका करने वालों को 34 साल के बाद न्याय मिला है. हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दंगा भड़काने और साजिश रचने के दोष में आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
चश्मदीद की जुबानी उसकी कहानी….
केस के गवाह जगशेर सिंह ने बताया कि नरसंहार में उसका परिवार खत्म हो गया और उन्हें दिल्ली छोड़कर पंजाब में बसना पड़ा. उनके एक भाई को उनके सामने आग लगाकर जला दिया गया था और बाकी दो को भी मार दिया गया था. भगवान ऐसा मंजर किसी को भी ना दिखाए. मेरे पूरे हंसते खेलते परिवार को दोषियों ने खत्म कर दिया. जिस मोहल्ले में हम लोग मिलजुल कर रहते थे, वही लोग हमारे दुश्मन हो गए. जगशेर कहते हैं कि मेरे बाल कटे हुए थे, इसलिए मैं बच गया. लेकिन भड़काऊ भीड़ ने जानवरों की तरह लाशों को नोचा और काटा.
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